साइंटिफिक-एना बस संविधान पर कुदने, कुतरने, नारा लगाने और रोटिया सेकने का गणतन्त्र! – न्याय की देवी

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साइंटिफिक-एना बस

संविधान पर कुदने, कुतरने, नारा लगाने और रोटिया सेकने का गणतन्त्र! – न्याय की देवी

मैं न्याय की देवी बोल रही हूं और मेरी आंखों से चित्र वर्षों बाद काली पट्टी के टुकड़े के बाद पहली बार आजाद भारत के लोकतन्त्र / प्रजातन्त्र / गणतन्त्र / जनतन्त्र को देख रही हूँ | आँखों की पट्टियाँ निकालने से पहले मेरे हाथ से तलवारें छीनकर संविधान की थामा दी गई ताकि सच्चाई देखने में किताबों में सीख, पापियों, अधर्मियों, विद्रोहियों को सजा न दी जाए | इससे भी बड़ी बात यह है कि संविधान को बदलने का काम पदों ने अपने पास रखा है ताकि मैं लोगों को न्याय दे सकूं कानून की धाराएं बता-बता कर चिल्लाती रहु और पीछे से धनबल, बाहुबल और फिर बहुमत से सजा या फैसला पहले ही कानूनी धारा को ही बदल दे या हटा दे | मैं तो यह भी देख रहा हूं कि मध्य प्रदेश के संविधान के नाम पर ऐसी सेना का जन्म हुआ है कि यह समय के चक्र या राष्ट्रीय ध्वज के गतिमान चक्र को भी क्षैतिज घुमाव के आधार पर पिछली तारिखों से लागू किया जा सकता है |

संविधान के नाम पर पुरा लोकतन्त्र संरचना कम जा रही है बल्कि उस पर कुदने, कुतरने, चिल्लाने और अपनी-अपनी रोटिया सेकने का काम ज्यादातर दिख रहा है | नए के डिजिटल इंडिया में बस बधाई देने के नाम पर पैसे जेबों में ढूंसा जा रहे हैं जबकि सत्यता से संविधान के लिए कर्म करने वाले गिनती के लोग नजर आ रहे हैं | मेरे कान पर भी हैडफ़ोन लगाया दिया या ब्लूटूथ लगाया दिया या एक और हाथ में मोबाइल ही पकड़ा दिया ताकि इंटरनेट पर सारी जानकारी लेकर इंटरनेट कर शेयर कर सकूं |

मेरे हाथ में जो संविधान दिया हैं उसमें कानून हटाने व नये जोडने में इतनी ओवर राइटिंग या काटा-पास कर दी की मुझे ढंग से पता ही नहीं चल पा रहा हैं कि इसमें लिखा क्या हैं | इससे भी बडी बात 106 संविधान संसोधन के नाम पर उसमे नये-नये कागज ढूंस दिये और ढूंसने का काम जारी हैं | इससे तो संविधान की किताब फूलकर मेरे हाथ से ही फिसलकर बिखरने की हालत में आ गई हैं | इस संविधान की जिल्द खोलकर इन सभी को व्यवस्थित तो कर दो |

संविधान दिवस बनाने के नाम पर एक संविधान के दो-दो राष्ट्रिय प्रोग्राम बनाये जा रहे हैं | संविधान के संरक्षक ही आधे इधर जा रहे हैं और आधे उधर जाकर इसे निहत्था, असहाय व अकेला छोड़ रहे हैं। संविधान की मूल प्रति को संसद में कैद करके मुझे भी गुलामी की जंजीरों से बांध रखा हैं | इसे मुझे सौंपे और मेरे पास उच्चतम न्यायालय के सभागार में रखे ताकि न्यायाधीश लोग उसे पढकर न्याय कर सके | जब न्यायाधीश पद पर रहते हुए मूल संविधान को देख व पढ ही नहीं पायेंगे तो कौनसा न्याय करेंगे |

संविधान को लागू करने के नाम पर गणतन्त्र दिवस बनाया जा रहा हैं, यहां तो घोर अनर्थ, अन्याय और असंवैधानिक काम हो रहा हैं | भारत के मुख्य न्यायाधीश को निचे बैठाया जा रहा हैं व इनसे संविधान की शपथ व शक्तियां लेने वाले मंच के ऊपर बैठे हैं | शर्म, निर्लज्जता, अपमान, तिरस्कार व अछूतों जैसा आचरण देखकर चूल्लू भर पानी में डुबकर मरने की बजाय न्याय की तराजू के पल्लडों व उसकी डोरी से खुद का गला घोटने की ईच्छा हो रही हैं क्योंकि अब राष्ट्रपति से संविधान की शपथ व शक्तियां लेने वाले राज्य सभा, लोकसभा के अध्यक्ष व प्रधानमंत्री भी मंच के ऊपर बैठ रहे हैं।

उच्चतम न्यायालय को नया झण्डा व प्रतिक चिह्न देकर उसे राष्ट्रीय ध्वज व अशोक स्तम्भ वाले राष्ट्रीय चिह्न से अलग नहीं करा अपितु लोकतन्त्र के न्यायपालिका वाले स्तम्भ को ढहा दिया | जब मुख्य न्यायाधीश तिरंगे और देश के लिए जान न्यौछावर करने वाले शहीदों को सलामी नहीं देंगे तो इस पद के आगे भारत नाम का मुखौटा इसलिए लगा रखा हैं कि जनता के मुंह के निवाले से वसूले टैक्स से पेट व जेब भरी जा सके | भारत का मुख्य न्यायाधीश मेरी आंखों की पट्टी हटाने, हाथ से तलवार छीन संविधान पकडाने की ताकत रखता हैं परन्तु अपने संविधान दिवस में राष्ट्रपति, राज्यसभा व लोकसभा के अध्यक्षों व प्रधानमंत्री को बुलाने की औकात नहीं रखता तो वो देशवासियों को संविधान के हिसाब से क्या न्याय देगा व संविधान की अवेहलना करने वालो को क्या सजा देगा |

 

लाईक और शेयर करने से माoराष्ट्रपति जी तक पहुंचने से कार्यवाही होगी G-PAY no jeetmani 9456334283

भारत के ही एक आम नागरिक ने राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय , भारत के मुख्य न्यायाधीश व सभी राज्यों के हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश व कई गणमान्य पदाधिकारिओं को एक साथ लिखित में इस सच्चाई से अवगत करा दिया तब भी अब तक संविधान के प्रति निष्ठा नहीं जागी शायद संविधान को कुतर-कुतर के लोगों को मुफ्त में ज्ञान बांटने से फुर्सत नहीं मिल पा रही हैं | उच्चतम न्यायालय के वकील भी इस इन्तजार में बैठे हैं कि कोई उन्हें अमेरीकी डालर के सामने लुडक रही खनखनाहट करने वाली नई भारतीय मुद्रा में फीस देदे तो वे कैस दर्ज कर मुझे यानि न्याय की देवी को न्याय दिला दे | भारत की जनता बड़ी भोली हैं वो तो मेरी इस दुर्दशा पर भी बधाईयां बांटकर छप्पन भोग वाला प्रसाद अपने आप के लिए ज्यादा लेने की उम्मीद में लगी हैं |

शैलेन्द्र बिराणी
युवा वैज्ञानिक