सोमवार को आयोजित हनुमान चालीसा पाठ के दौरान डॉ अग्रवाल ने कहा कि आज अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के हम सब साक्षी बनें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हजारों साधु संतों, राम भक्तों, सनातन प्रेमियों के बीच श्रीराम मंदिर का उद्घाटन किया। कहा कि इस पुण्य दिन के देश के साथ विदेश भी साक्षी बना। कहा कि सबकी साधना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राम मंदिर बनाए जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
उन्होंने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड से भगवान श्री राम का भी विशेष नाता है। देवप्रयाग में भगवान श्री राम को समर्पित रघुनाथ मंदिर एवं बागेश्वर जनपद में निर्मल बहती सरयू नदी है। मां सरयू का उद्गम स्थल हमारे उत्तराखंड में है एवं सरयू किनारे ही अयोध्या धाम में श्री राम विराजमान हैं।इस मौके पर अनुसूचित मोर्चा जिलाध्यक्ष राम किशन, पूर्व जिला मंत्री मनीष नैथानी, संजीव सैनी, हितेंद्र सैनी, गंगा सिंह कुमाई, भूपेंद्र सिंह नेगी, सुरेश सैनी, संपन्न सैनी, रामेश्वर चैधरी गणेश नौडियाल, रणवीर सिंह पवार, शमशेर सिंह रागढ़ और कीर्तन मंडली सहित सैकड़ों की संख्या में रामभक्त उपस्थित रहे।
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रामलला की मूर्ती की प्राण प्रतिष्ठा पर भण्डारे का आयोजन
देहरादून। अयोध्या में श्री रामलला की आज होने जा रही प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे उत्तराखण्ड में हर्षोल्लास का माहौल देखने को मिला । इस पावन अवसर पर प्रदेश की राजधानी देहरादून में जगह-जगह भण्डारे और मिष्ठान वितरण किया गया। अयोध्या में राम लला की मूर्ती की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम पूरे दून में भव्य तरीके से मनाया गया।
भगवान राम युगों-युगों से भारत की आत्मा में रचे बसे रहे हैं। राम की मर्यादा का अनुसरण करने के प्रयास में कई संत, महात्मा और बुद्धिजीवी जीवनपर्यंत सफलता अर्जित न कर सके। लेकिन, आक्रमणकारी बाबर के सेनापति मीर बाकी ने भगवान राम की जन्मस्थली के तौर पर अयोध्या में स्थापित श्री राम मंदिर को 1528 में ध्वस्त कर दिया और उसके स्थान पर तीन गुम्बद वाली मस्जिद बना डाली। तभी से हिंदू समुदाय उस जमीन को वापस पाने की कोशिश कर रहा था। तत्पश्चात हिंदुओं के दबाव में आकर अकबर के समय राम चबूतरा बनवाया गया। लेकिन, बाद में विवाद बढ़ता चला गया। इसलिए 1859 में, जब भारत ब्रिटिश राज के अधीन आया, तो अदालत ने मस्जिद का आंतरिक प्रांगण मुसलमानों को और चबूतरे वाला बाहरी प्रांगण हिंदुओं को सौंप दिया। इसके बाद 23 दिसंबर 1949 को राम जन्मभूमि चैकी के चैकीदार अब्दुल बरकत को तड़के घंटा-घड़ियालश् की आवाज और श्भये प्रगट कृपाला…श् के भजन सुनाई देने लगे। अब्दुल बरकत के अनुसार उन्होंने प्रकाश की एक चमक देखी जो सोने की हो गई। बरकत ने बताया कि उस चमक के साथ उन्हें चार या पांच साल के बहुत सुंदर भगवान जैसे बच्चे का चित्र दिखाई दिया। इस प्रकार रामलला का प्रकट होना राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के 491 साल के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण घटना साबित हुई। भगवान राम की उस मूर्ति के चमत्कार पर मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने सवाल उठाया और विवाद को जन्म दिया। तत्कालीन राज्य सरकार ने तब मस्जिद को बंद कर दिया, लेकिन हिंदुओं को बाहर से ही विराजमान रामलला की पूजा करने की अनुमति दे दी। यहीं से मुकदमों की एक श्रृंखला शुरू हुई। अंततः एक लंबी लड़ाई के पश्चात हिंदू पक्ष को जीत हासिल हुई और सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर, 2019 के अपने फैसले में रामलला को पूरी जमीन दे दी। जिसमे इस स्थान को ‘राम का जन्म स्थान’ के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई।
राम मदिर के निर्माण और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की नींव में बलिदान भी शामिल हैं, जब 30 अक्टूबर और 3 नवंबर 1990 के दिन तत्कालीन मुलायम सिंह यादव की सरकार ने कारसेवकों पर गोलियां चला दी, जिसमें सरकारी आंकड़ों के अनुसार 17 लोगों की मौत हो गई। लेकिन इसने उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया और कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 6 दिसंबर, 1992 को कार सेवा को फिर से शुरू करने का दिन तय किया गया। कल्याण सिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर करते हुए कहा कि विवादित स्थल पर कोई स्थायी निर्माण नहीं किया जाएगा। अंततः लाखों कार सेवकों ने मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। केंद्र सरकार कुछ कर पाती इससे पूर्व ही कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया भाजपा ने राम मंदिर के मुद्दे को जिंदा रखा और 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाई। 2019 में फिर से केंद्र की सत्ता भाजपा के हाथ आई और इसी साल 9 नवंबर 2019 में राम मंदिर के अनुकूल सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। फलस्वरूप मंदिर निर्माण का कार्य आरंभ हुआ और इस तरह से आपके, हमारे और हम सबके श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा आज सुनिश्चित हो पाई।
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